रंग अलग अलग दिखाती रही उम्र भर
जिंदगी कुछ न कुछ सिखाती रही उम्र भर ।
ख़्वाब जो न होंगे मुकम्मल कभी
जिंदगी उन्ही ख्वाबों को दिखाती रही उम्र भर।
जुबां चुप , आँखें करती रही बयानी
जिंदगी यूं करती रही बातें उम्र भर ।
एक मिसरा ग़ज़ल का, न कह सकी
औरों की गजले , गुनगुनाती रही उम्र भर ।
खुश करना सबको ,मुमकिन नहीं
करती रही समझौतों का हिसाब,उम्र भर।
कुछ तो खूबियाँ होंगी मुझमें कहीं
पर,लोग खामियाँ ढूंढते रहे उम्र भर।
कुछ तो अनुपम नहीं मुझमें पर
"अनुपमा" पुकारते रहे सब, उम्र भर ।
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