Monday, 31 July 2023

शब्दो के रंग

 कभी परखना 

शब्दों के रंग,

शोख फूलो की तरह ही 

तो बांध जाते हैं,

अपने सम्मोहन में ।

महकते, बहकते है

कविताओं में,नज्मों में,रुबाइयो में

सलीके से सजे संवरे ।

 किताबों के बीच से,

आती खुशबू

नहीं होती कमतर

किसी रजनी गंधा की खुशबू से।

छोड़ जाते हैं शब्द

कवि मन की उदासी भी

झड़ हरसिंगार से।

चुभा जाते हैं कांटे भी

तल्खियो के बीच 

हंसते शब्द।

शब्द हमेशा सुर्ख नही होते,

हर रंग से होते हैं ओत प्रोत ,

 जीवन के रंग से,

अनुभवों के रंग से।

शब्दों के गुलदस्ते में

हर रंग के फूल होते हैं,

जिन्हे चुना और छुआ जाता है

अंतस की मनोदशा और दिशा पर।

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