हाथों में मेरे कला नहीं
बनाने की किसी की तस्वीर,
इसलिए बस रचती हूँ
कल्पनाओं की तस्वीर।
बनाती हूँ,मिटाती हूँ,
मन मर्ज़ी सजाती हूँ,
विरह ,प्रेम,प्रकृति,त्याग
आकुलता, व्याकुलता
सभी रंगों को मिलाती हूँ।
रंगती इन भावों से,
शब्दों की कूची से
उन्हें देती आकार
होती है तब मेरी
रचना की तस्वीर साकार।
ईद की तस्वीर में
होती रंग दिवाली की
नहीं कोई सीमित कल्पना
मुझ मतवाली की।
कल्पना की तस्वीरों में
खुद को भी रच लेती हूँ
लफ़्ज़ों के रंग,भावों के संग
उन तस्वीरों में
मैं भी जी लेती हूँ
कुछ अपनी प्रतिबिम्ब ढूंढ लेती हूँ....
बनाने की किसी की तस्वीर,
इसलिए बस रचती हूँ
कल्पनाओं की तस्वीर।
बनाती हूँ,मिटाती हूँ,
मन मर्ज़ी सजाती हूँ,
विरह ,प्रेम,प्रकृति,त्याग
आकुलता, व्याकुलता
सभी रंगों को मिलाती हूँ।
रंगती इन भावों से,
शब्दों की कूची से
उन्हें देती आकार
होती है तब मेरी
रचना की तस्वीर साकार।
ईद की तस्वीर में
होती रंग दिवाली की
नहीं कोई सीमित कल्पना
मुझ मतवाली की।
कल्पना की तस्वीरों में
खुद को भी रच लेती हूँ
लफ़्ज़ों के रंग,भावों के संग
उन तस्वीरों में
मैं भी जी लेती हूँ
कुछ अपनी प्रतिबिम्ब ढूंढ लेती हूँ....
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