खुश रहने लगी हूँ,
चहकने लगी हूँ,
शब्दों के पंख क्या लगे
मैं तो उड़ने लगी हूँ।
कल्पना की उड़ान है,
असीम जहान है
बनाना अपनी पहचान है,
कुछ बुनने लगी हूँ
कुछ लिखने लगी हूँ
आजकल ,खुश रहने लगी हूँ।
लग रहा जैसे
नयी सी हो गयी हूँ,
लहरों,छन्दों के नए भाव
रोज़ पहनने लगी हूँ,
हर लफ़्ज़ों में ,हर पन्नो में
नयी आशाएँ देखने लगी हूँ
आजकल,खुश रहने लगी हूँ।
कविताओं के दिए जलाने लगी हूँ
कल्पनाओं की बाती से
रूह रोशन करने लगी हूँ।
चाहती हूँ फैले रौशनी
हो चहुँ ऒर उजियारा
अपनी लेखनी से
लौ प्रज्ज्वलित करने लगी हूँ
आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ।
भावों के रंगों से ओतप्रोत रहने लगी हूँ
शब्दों से होली खेलने लगी हूँ
देख बढ़ते ,घटते चाँद को
सेवइयों की कल्पना करने लगी हूँ,
रोज़ ही ईद ,होली मनाने लगी हूँ,
आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ।
कभी तितली कभी भंवरा
कभी फूल बन जाती हूँ
कभी बादल, कभी बारिश बन
शब्दों को सींच जाती हूँ
सौंधी सौंधी मिटटी की
खुश्बू सी कविता
को हरपल महसूस करने लगी हूँ
आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ
बहुत खुश रहने लगी हूँ....
चहकने लगी हूँ,
शब्दों के पंख क्या लगे
मैं तो उड़ने लगी हूँ।
कल्पना की उड़ान है,
असीम जहान है
बनाना अपनी पहचान है,
कुछ बुनने लगी हूँ
कुछ लिखने लगी हूँ
आजकल ,खुश रहने लगी हूँ।
लग रहा जैसे
नयी सी हो गयी हूँ,
लहरों,छन्दों के नए भाव
रोज़ पहनने लगी हूँ,
हर लफ़्ज़ों में ,हर पन्नो में
नयी आशाएँ देखने लगी हूँ
आजकल,खुश रहने लगी हूँ।
कविताओं के दिए जलाने लगी हूँ
कल्पनाओं की बाती से
रूह रोशन करने लगी हूँ।
चाहती हूँ फैले रौशनी
हो चहुँ ऒर उजियारा
अपनी लेखनी से
लौ प्रज्ज्वलित करने लगी हूँ
आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ।
भावों के रंगों से ओतप्रोत रहने लगी हूँ
शब्दों से होली खेलने लगी हूँ
देख बढ़ते ,घटते चाँद को
सेवइयों की कल्पना करने लगी हूँ,
रोज़ ही ईद ,होली मनाने लगी हूँ,
आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ।
कभी तितली कभी भंवरा
कभी फूल बन जाती हूँ
कभी बादल, कभी बारिश बन
शब्दों को सींच जाती हूँ
सौंधी सौंधी मिटटी की
खुश्बू सी कविता
को हरपल महसूस करने लगी हूँ
आजकल बहुत खुश रहने लगी हूँ
बहुत खुश रहने लगी हूँ....
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