Tuesday, 13 June 2017

बाल मजदूर

छोटा सा छोटू
अचानक से बड़ा हो गया
पिता की मृत्यु के बाद
घर का पिता बन गया।
कभी ईंटे उठाई,
कभी किसी ढाबे पर चाय बनाई
कभी की बूट पॉलिश, कभी की पुताई
दो पैसे मिले जहाँ ,वहीँ की उसने कमाई।
छोटी सी मुन्नी ने भी
अपनी जिम्मेदारी है दिखाई
गुड्डा गुड़िया खेलने की उम्र में
छोटे भाई बहनों को संभालती,
कभी पत्थर ढोये
कभी घरों के जूठन धोए
उसने  भी हैं अपने सपने खोए।
ज़माने की गन्दी नज़रो की भी शिकार हुई
पर सुनता कौन उसकी
वो लाचार हुई।
ढोते ढोते जिम्मेदारी
कब बचपन इनका जवान हुआ
क्या होता है बचपन
उन्हें न कभी भान हुआ।
नाम के छोटू ,मुन्नी
मेहनत ,मजदूरी कर
घर के बड़े बन जाते हैं
सपने इनके पोटली में
धरे के धरे  रह जाते हैं।
गरीबी,विवशता,लाचारी
ये सब लाइलाज बीमारी
बाल मजदूरी से शुरू होता बचपन
मजदूरी की ही राह बिताते हैं
कहानी ये असंख्य
 छोटू मुन्नी की
जो न कंधों पर
बस्तों का बोझ उठाते हैं
गरीबी और जिम्मेवारियों के बोझ तले
स्वतः ही बाल से बुजुर्ग बन जाते हैं।

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