Sunday, 4 June 2017

नाव

एक सहज नाव नहीं मैं
जीवन बसता मुझमे
मुझसे ही कइयों का जीवन सजता
कल कल कल लहरों पर जब मैं चलता।

नदी पार एक गाँव है
जहाँ लोगो का जीवन मुझसे चलता
एक गरीब तबका ही, वहां रहता
न रास्ता कोई,न कोई पूल
बस नदी पर मेरा जोर है चलता।

प्रगति का नमो निशान नहीं
बस प्रकृति की गोद में बसता
इनका बस पानी और मुझसे रिश्ता
बच्चे,बुढ़े या फिर जवान
सब का वाहन बन मैं ही चलता।

मैं एक सहज नाव नहीं
मैं मूक वधिर बन
दुःख दर्द इनके बांटता
इनका जीवन है मुझसे चलता
मैं इनके जीवन में बसता
कल कल कल पानी पर चलता।

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