Tuesday, 13 June 2017

पुरुष

नहीं पुरुष होना आसान होता है!
तुम पुरुष हो,रो कैसे सकते हो
तुम पुरुष हो तुम सब झेल सकते हो!
बचपन से उसे ये सुनना पड़ता है
कोमल मन को भी
पाषाण बनाना पड़ता है
नहीं पुरुष होना आसान होता है!

यौवन की दहलीज पर आते ही उससे
उम्मीदों की झड़ी लग जाती है
सबकी उम्मीदों पर उसे
खड़ा उतरना पड़ता है,
अपने स्वप्नों को भूल
माँ बाप के देखे स्वप्नों को
पूरा करता रहता है
नहीं पुरुष होना आसान होता है!

सब बातों की जिम्मेवारी
कंधो पर आ जाती है
मुश्किल हालातों में भी
मुस्कुराता रहता है क्योंकि,
रोते नहीं पुरुष
वो खुद को ये समझाता है!
नहीं पुरुष होना आसान होता है!

माँ, बाप,घर,परिवार
सबके लिए जीता है
उनकी ख़्वाहिशों की खातिर
अपने को वो भूलता है
सबके नाज़ों नख़रे वो सहता है
नहीं पुरुष होना आसान होता है!

बच्चे उनके उनसे बेहतर जीए
पत्नी की मुस्कान न हो कम
माँ बाप की उम्मीदों पे हो खड़ा
न हों रिश्तेदार ख़फ़ा
सबका हिसाब उसे रखना पड़ता है
नहीं पुरुष होना आसान होता है!

स्त्री जीवन गर है मुश्किल
तो पुरुष का जीवन भी
आसान कहाँ होता है?
अपवादों की बातें छोड़ो
अपवाद कहाँ नहीं होता है?
नहीं, पुरुष होना भी
 आसान होता है!!!!






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