Tuesday, 27 June 2017

शायद






 कुछ अनकहे शब्दों में
कुछ अधूरे छन्दों में
कुछ अधूरे से सवाल में
कुछ उलझे से ख्याल में
तुम्हारे पुराने घर की दीवारों में
टिमटिमाते सितारों में
रतजगे के आलिंगन में
मासूम से चुम्बन में,
बंद पड़े लिफाफों में
खत के अल्फ़ाज़ों में,
किसी डायरी के पन्नों में
फंसी हूँ कुछ हरफ़ो में
साथ सुने गीत में
यादों के मधुर संगीत में,
तुम्हारे अच्छे, बुरे ख़्वाबों में
तुम्हारी शहर की हवाओ में
तुम्हारी आस्था और विश्वास में
तुम्हारी चढ़ती, उतरती श्वास में
तुम्हारी दर्द भरी मुस्कान में
तुम्हारी अपनी पहचान में,
तुम्हारे नेह के गुमान में
शायद
मैं अब भी बाकी हूँ तुममे
शायद!!!


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