कितने ही भाव आते जाते
इस मन मस्तिष्क में
सबको पिरोकर ,सजाकर
हृदय के ताप का
उदगार लिखती हूँ।
कभी मादकता से ओत प्रोत
भावों का अभिसार लिखती हूँ
कभी श्रृंगार, कभी उन्माद
कभी प्रेम,कभी कटाक्ष लिखती हूँ
कभी पतझड़,कभी मधुमास लिखती हूँ
कभी तपती गर्मी,कभी शीतल बयार
लिखती हूँ
मन को झंझोरते भावों का
हिसाब लिखती हूँ
सतरंगी सपनों का
किताब लिखती हूँ
कभी किसी अनजान प्रिय पर
अपना अधिकार लिखती हूँ
मैं ह्रदय के ताप का उदगार
लिखती हूँ
बस उदगार लिखती हूँ......
इस मन मस्तिष्क में
सबको पिरोकर ,सजाकर
हृदय के ताप का
उदगार लिखती हूँ।
कभी मादकता से ओत प्रोत
भावों का अभिसार लिखती हूँ
कभी श्रृंगार, कभी उन्माद
कभी प्रेम,कभी कटाक्ष लिखती हूँ
कभी पतझड़,कभी मधुमास लिखती हूँ
कभी तपती गर्मी,कभी शीतल बयार
लिखती हूँ
मन को झंझोरते भावों का
हिसाब लिखती हूँ
सतरंगी सपनों का
किताब लिखती हूँ
कभी किसी अनजान प्रिय पर
अपना अधिकार लिखती हूँ
मैं ह्रदय के ताप का उदगार
लिखती हूँ
बस उदगार लिखती हूँ......
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