वो हमारी पहली मुलाकात
जब कच्चे पक्के से थे
हमारे जज्बात,
लाकर दिया था
एक पौधा तुमने
और ये कहा था
एक पौधा हूँ मैं
मुझे प्रेम वृक्ष बनाओ
अपनाकर मुझे,मेरा जीवन बचाओ।
बहुत भाया था, ये अंदाज़ तुम्हारा
फिर चढ़ा परवान,प्रेम हमारा
पूछा था मैंने फिर
किस फूल का पेड़ है?
या यूँ ही कोई बेल है?
हँसकर कहा था तुमने
बेल होगी तो फ़ैल जायेगी
मेरे इश्क़ के जुनून की तरह
और पेड़ बना तो
रहना तुम महफूज़ उसपर
एक पँछी की तरह
बनाना हमारा घोंसला
और रहना मेरे साथ
पेड़ के जड़ की तरह...
एहसास तुम्हारा सच्चा लगा था
अंदाज़ तुम्हारा ये अच्छा लगा था।
बो दिया वो पौधा हमने
तुम्हारी ही किसी जमीन पर
तुम्हारी मुहब्बत, तुम्हारी यकीन पर
बढ़ता रहा वो पौधा ,बढ़ते रहे हमारे ख्वाब
फिर
उम्र कुछ बीता और बीते कुछ साल
हमारे प्रेम का हुआ
उस पौधे जैसा ही कुछ हाल
वक़्त की तरह बस बढ़ता गया
न फूल खिले उसमे
न उसने कोई छाँव दिया
बसाए उसकी हरियाली मन में
ज़माने के साथ हमारा वक़्त बहता गया।
सालों बाद
उस पेड़ के सामने हूँ
हरियाली आज भी है ,उसकी बरक़रार,
सोचा कल सींच आऊँगी
पुराने कुछ साल जी आऊँगी,
पर ये क्या ,
मेरे आने की शायद
उसको भनक लग गयी
रातों रात खड़ी हो गयी
पेड़ के सामने एक दिवार
जैसे कह रहे हो तुम
नहीं हूँ मैं अब
इस पेड़ के हवा की भी हक़दार........
जब कच्चे पक्के से थे
हमारे जज्बात,
लाकर दिया था
एक पौधा तुमने
और ये कहा था
एक पौधा हूँ मैं
मुझे प्रेम वृक्ष बनाओ
अपनाकर मुझे,मेरा जीवन बचाओ।
बहुत भाया था, ये अंदाज़ तुम्हारा
फिर चढ़ा परवान,प्रेम हमारा
पूछा था मैंने फिर
किस फूल का पेड़ है?
या यूँ ही कोई बेल है?
हँसकर कहा था तुमने
बेल होगी तो फ़ैल जायेगी
मेरे इश्क़ के जुनून की तरह
और पेड़ बना तो
रहना तुम महफूज़ उसपर
एक पँछी की तरह
बनाना हमारा घोंसला
और रहना मेरे साथ
पेड़ के जड़ की तरह...
एहसास तुम्हारा सच्चा लगा था
अंदाज़ तुम्हारा ये अच्छा लगा था।
बो दिया वो पौधा हमने
तुम्हारी ही किसी जमीन पर
तुम्हारी मुहब्बत, तुम्हारी यकीन पर
बढ़ता रहा वो पौधा ,बढ़ते रहे हमारे ख्वाब
फिर
उम्र कुछ बीता और बीते कुछ साल
हमारे प्रेम का हुआ
उस पौधे जैसा ही कुछ हाल
वक़्त की तरह बस बढ़ता गया
न फूल खिले उसमे
न उसने कोई छाँव दिया
बसाए उसकी हरियाली मन में
ज़माने के साथ हमारा वक़्त बहता गया।
सालों बाद
उस पेड़ के सामने हूँ
हरियाली आज भी है ,उसकी बरक़रार,
सोचा कल सींच आऊँगी
पुराने कुछ साल जी आऊँगी,
पर ये क्या ,
मेरे आने की शायद
उसको भनक लग गयी
रातों रात खड़ी हो गयी
पेड़ के सामने एक दिवार
जैसे कह रहे हो तुम
नहीं हूँ मैं अब
इस पेड़ के हवा की भी हक़दार........
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