Tuesday, 23 May 2017

तुम

बिन छुए भी
तुम्हारा स्पर्श पाती हूँ
बिन बोले तुम्हारे शब्दों
 को समझ जाती हूँ।
मेरा मौन भी तुम्हें
 समझ आता है
शब्द भी मेरे,मुझसे पहले
तुम्हारी जुबाँ कह जाता है
संग तेरा मेरा कुछ ऐसा हो गया है
सबकुछ एकाकार सा हो गया है
उतार- चढ़ाव,जोड़ -घटाव
सब साथ हमने काटा है
ख़ुशी हो या गम
सब साथ ही तो बाँटा है।
लम्हे,दिन साल बन
 वक़्त यूँ ही झपकी में
गुजर जाता है,।
बस,हमारे कच्चे पक्के
खिचड़ी से बाल
एहसास वक़्त का दिलाता है।
              देखो न
गुजर गए कितने साल
वर्ष में एक और लग गयी गाँठ
मजबूती इस मजबूत रिश्ते की
और बढ़ गयी
दोस्ती हमारी और
 गहरी हो  गयी।
 बनकर हमदम,हमसफ़र, हमराज़
देते रहे तुम, मेरे सपनों को परवाज़
यूँ ही साथ बनाये रखना
दोस्ती अपनी निभाए रखना......








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