Friday, 19 May 2017

भोर

हुई रात्रि घनघोर शेष
नहीं तम का कहीं अवशेष
रवि आया ,संग लालिमा ले
सिंदूरी हुई धरती की देह
निकल पड़े विहग
उन्मुक्त आकाश में
नव विहान,नव उल्लास
सुनो इनके कलरव मधुर ताल में
मस्त उपवन के ,फूल सारे
तितलियों के गूंजायमान में
सुरभित बयार,प्रकृति का उपहार
पुलकित मन इस
सुन्दर भोर में।

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