Monday, 22 May 2017

दीवार

दीवारें गूंगी लगती थी
एक कमरे की दीवार भी,
चारदीवारी लगती थी।
हुई जबसे शब्दों से मुलाकात
बढ़ा कुछ लिखने से ताल्लुकात,
दीवारें बोलने लगी
मुझे महफ़ूज़ करने लगी।
अब दीवारे भी खुश रहने लगी हैं
संग मेरे शब्द ,भाव उकेरने लगी हैं
नहीं अब सूनेपन का एहसास है
अब तो दीवार भी बन गयी
कुछ खास है
आये हैं सुनते
दीवारों के भी कान होते हैं
इसलिए ,दीवारों को भी
अपनी लिखी सुनाती हूँ
दीवारों संग हँसती, बतियाती हूँ....

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