Monday, 22 May 2017

व्यथा कलम की

मैं इतिहास रचने वाला हूँ,
एक इतिहास का हिस्सा बनने वाला हूँ
लुप्त हो रही, अहमियत मेरी
न रही इस बदलते युग में
पहले सी हैसियत मेरी
मैं क से कलम की तस्वीर
बनकर रहनेवाला हूँ
मैं इतिहास में बसनेवाला हूँ।
मैं हूँ कलम
हो रही अपना भविष्य देखकर
मेरी आँखें नम।

हस्ताक्षर भी अब हो गए डिजिटल
नहीं रही है ,मेरी कमी किसी को खल
मगन सब नए नए साधनों के प्रभाव में
नहीं जी रहे कलम के अभाव में
लेखनी रही मेरे बिन भी फूल फल।
ये देख,हो रही
मेरी आँखे सजल।

तुलना होती थी मेरी
कभी तलवार से
पूजा जाता था मैं,प्यार से
पाया जाता था ,जेब में सबके
आज उपेक्षित मिलता हूँ,
दुखी हूँ, खुद को बेबस पाता हूँ
अपनी व्यथा सुनाता हूँ।
रहा हूँ सिसक
लिए दिल में कसक
मैं हूँ कलम
हो रहीं है अपना भविय देखकर
मेरी आँखे नम.....

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