Friday, 19 May 2017

कबड्डी

भुलाना चाहूँ, भुला न पाऊँ
तेरी यादें
छुड़ाना  चाहूँ, छुड़ा न पाऊँ
तेरी यादें
 कबड्डी के सधे खिलाड़ी सी है
तेरी यादे।
गहरी लंबी साँस लिए
बार बार छूने आती है मुझे
तेरी यादें
अपने को बचाती हूँ
इधर उधर भागती हूँ
पर जीत कहाँ पाती हूँ,
कोशिश करती हूँ ,मैं भी
एक सधे खिलाडी जैसे
छिटकने की,दूर भागने की
फिर भी छू जाती हैं
तेरी यादें
तुम्हारे पाले में जाना नहीं चाहती
छूकर तुम्हें आना नहीं चाहती।
जाना पड़ता है,कई बार मगर
अपने को आजमाने के लिए
अपनी जिद को जिताने के लिए
जीतना है खुद को खुद से
पर हर बार हरा जाती हैं
तेरी यादे
कभी मैं तुम पर हावी
कभी तुम मुझपर।
ये सिलसिला यूँ ही
यादों का कभी
इस पाला, कभी उस पाला
कितनी सुहानी थी यह छुआ छुई
बना दिया है ,इसे खेल कबड्डी
तेरी यादे.....



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