Monday, 15 May 2017

रूठा तारा

छत पर टहल रही हूँ
चाँद तारों की
गुफ़्तगू सुन रही हूँ
एक तारा जरा रूठा सा है
शायद अंदर से कुछ टूटा सा है
दर्द को अपने छुपा रहा है
दूसरे तारों के साथ मुस्कुरा रहा है
शायद बिछड़ गया है,अपने प्यार से
सुखी नहीं शायद अपने संसार से।
मुझे ऐसा लग रहा है
चाँद उसे कुछ समझा रहा है
कर ले दोस्ती अपने प्यार से
शायद ये बता रहा है,
हमसफ़र न सही,
हमदर्द मिल जायेगा
बाँट दुःख तकलीफ उससे
तू अपने दर्द से छुटकारा पायेगा
पर वो ज़िद्दी तारा
समझ नहीं पा रहा है
बाकी तारो के साथ
यूँ ही झूठमूठ मुस्कुरा रहा है.....

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