Tuesday, 16 May 2017

महानगर

मन मस्तिष्क में कोलाहल सा भर गया है
दिल भी कुछ तंग तंग सा हो गया है
आँखों में धुआँ धुआँ सा भर गया है
हर शख्स समस्याओं का अंतहीन
सड़क सा हो गया है
           लगता है
इंसान भी कुछ महानगर सा हो गया है.....

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