Monday, 29 May 2017

बाल्टी में चाँद

आँगन में भरी बाल्टी थी पड़ी,
चाँद की नज़र उसपर पड़ी,
देख उसमे अपनी छवि, वो घबराया
क्या सच में,
धरती पर दिन ऐसा आया?
नदी तालाब क्या सब सूख गए?
क्या ,या गए दिन सच में इतने बुरे!!
      नहीं, नहीं वो चिल्लाया
पास का बादल, देख यह
 मंद- मंद मुस्काया
बोला दूर नहीं वो दिन
जब तू देखेगा ,ऐसे ही
अपनी प्रतिबिम्ब......

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