आज चलो लिखती हूँ
एक सच्ची प्रेम कथा
नायक, नायिका हैं जिसके
सबसे जुदा
वो लिखती थी ऐसे
सफा दर सफा
जैसे करती रौशन चिराग
लेखनी से उसके एक
निकलती थी आग।
होती थी हाथों में सिगरेट उसके
धुआँ सिगरेट का ,ऊपर नहीं
शायद पन्नो से जाता था चिपक
और पन्नो से पढ़नेवालों तलक,
जम जाती थी,सिगरेट के धूँए सी
मन मस्तिष्क पर उसकी लिखाई।
वो लिखती थी,सबसे अलग
लापरवाह, बेफिक्र सी
समाज की जिक्र सी
इश्क़ उसका था जूनून
चलता था साथ उसके
बनकर उसकी परछाईं
ज़माने से नहीं वो डरती थी
सबकुछ सरे आम करती थी
जीवन उसका था सबके सामने
एक खुली किताब,
पुरस्कार भी रहता था बेताब
देने को उसकी लेखनी को दाद
अपनी कूची से रंगों को उकेरता
नायक उसका
नायिका के भावों को रंगता
वो भाव रचती वो इनमे रंग बिखेरता
रहता उसके संग अंग जैसा
अपने पेंटिंग के रंग जैसा
साथ रहा उसके हरदम,हरपल
न समाज की चिंता
न घर की फ़िकर
बना रहा वो उसका हमदम,हमसफ़र
कलम और कूची की मित्रता
रही बनी उनके रिश्तों की प्रगाढ़ता
सबसे अलग सबसे जुदा
अमृता इमरोज़ की प्रेम कथा......
एक सच्ची प्रेम कथा
नायक, नायिका हैं जिसके
सबसे जुदा
वो लिखती थी ऐसे
सफा दर सफा
जैसे करती रौशन चिराग
लेखनी से उसके एक
निकलती थी आग।
होती थी हाथों में सिगरेट उसके
धुआँ सिगरेट का ,ऊपर नहीं
शायद पन्नो से जाता था चिपक
और पन्नो से पढ़नेवालों तलक,
जम जाती थी,सिगरेट के धूँए सी
मन मस्तिष्क पर उसकी लिखाई।
वो लिखती थी,सबसे अलग
लापरवाह, बेफिक्र सी
समाज की जिक्र सी
इश्क़ उसका था जूनून
चलता था साथ उसके
बनकर उसकी परछाईं
ज़माने से नहीं वो डरती थी
सबकुछ सरे आम करती थी
जीवन उसका था सबके सामने
एक खुली किताब,
पुरस्कार भी रहता था बेताब
देने को उसकी लेखनी को दाद
अपनी कूची से रंगों को उकेरता
नायक उसका
नायिका के भावों को रंगता
वो भाव रचती वो इनमे रंग बिखेरता
रहता उसके संग अंग जैसा
अपने पेंटिंग के रंग जैसा
साथ रहा उसके हरदम,हरपल
न समाज की चिंता
न घर की फ़िकर
बना रहा वो उसका हमदम,हमसफ़र
कलम और कूची की मित्रता
रही बनी उनके रिश्तों की प्रगाढ़ता
सबसे अलग सबसे जुदा
अमृता इमरोज़ की प्रेम कथा......
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