Monday, 15 May 2017

मन की मधुशाला 1 & 2

सुन्दर शब्द स्वप्न दिखाती रोज़
मेरे अल्फ़ाज़ों की हाला
मधुर,मदिर मेरे ख्यालों की
 मधुशाला
और लिखे जा
और रचे जा
शोर मचाती
मन की मधुर आकुलता
लिखकर ही मिटती फिर
ये मन की व्याकुलता।
कोरे कागज पर जब ,शब्द बिखरते
होती तसल्ली ,मद मस्त मनुष्य सी
फिर लहरों, छंदों सी बहती 
मेरे मन के शब्द ,बन मेरी कविता।
मधुशाला मैं ही अपनी
मेरे शब्द ही मेरे हाला
मैं ही अपने शब्दों की साकी
मैं ही अपने शब्दों की सहबाला.......



कोरे कागज जैसे खाली प्याला
लिखकर लगे जैसे ,भर दी हाला
मिलती नही तृप्ति
बस कुछ शब्दों से
लगती प्यासी अधर
प्यासी मन की मधुशाला
भावों को जो मेरे
भर दे लफ़्ज़ों से
घूँट घूँट पिला दे अपने हर्फों से
ऐसी हो कुछ मेरे मन की मधुशाला!
लालायित रहती कुछ रचने को
आकुल रहते शब्द हरपल सजने को
लहरों, छन्दों से भरती ,बहती
ये मेरे मन की मधुशाला....



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