पुराने खतों को निकाल कर बैठी हूँ ,
यादों के अम्बार पर बैठी हूँ,
तब्दील हो गया है
अतीत वर्तमान में,
मैं उसकी रौशनी मे
नहा कर बैठी हूँ..
हर ख़त का अपना किस्सा है
हम दोनों का अपना हिस्सा है ,
आज उन किस्सों को ,
सुनने बैठी हूँ
पुराने खतों को निकाल कर बैठी हूँ ...
हर एक बात लिखा करती थी ,
हर अफसाना बयां करती थी ,
जुदाई के छण हो या
मिलने की आकुलता,
सबको शब्दों मे, उतारा करती थी
अपनी परेशानियां, अपनी नादानिया
सब तुम तक पहुंचाया करती थी
बिन सोचे -समझे ,कुछ भी लिख जाया करती थी
मन के भावों को ,ख़त से ही
तुमसे बाटां करती थी,
बेटे के बढ़ते पहले कदम की ,
उसके पहले बोले शब्द की,
उसकी किलकारी, उसकी शैतानी
सब तुमसे ऐसे ही तो, बांटी थी
उसकी सारी बातें ऐसे ही
तुम तक पहुंचाया करती थी,
तुम्हारे खतों से ,तुम्हारे शब्दों से
कितने ही अनदेखे जगह
अपने -अपने से हैं
कितने ही पहाड़ों और पगडण्डीयों
की राह, जाने पहचाने से हैं.
हजारों मिलों की दूरियाँ
मिटा देती थी ये ख़त, जिन्हें
आज फिर निकाल कर बैठी हूँ........
खतों से जीवंत हो गए हैं
जैसे गुजरे पल
कई अवसादों के पल
कई उन्मादों के पल
आज सभी पलों को कुरेदने बैठी हूँ
भूले-बिसरे पलों को
पन्नों मे संभाल कर बैठी हूँ
नए आज में, नए साधन में
ख़त हो गया है गुजरा कल
बस उन्ही गुजरे कल को
सजीव कर बैठी हूँ
पुराने खतों को निकाल कर बैठी हूँ
यादों के अम्बार पर बैठी हूँ .................