जिसे किया जा रहा अनदेखा
बस वही अदना मजदूर, हूँ मैं
चुनाव की आन,बान शान
संसद का मुद्दा,महान हूँ मैं।
ज़िन्दगी और मौत कंधे पर ढोए हमने
खून से सड़कों पर निशान बनाया है
नंगे पाँव, नाप गए राज्यों के सरहदों को
हमें न किसी ने अपनाया है,
हिम्मत और जुनून का ज़िंदा मिसाल हूँ मैं
पर,बस अदना मजदूर हूँ मैं।
राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं का
खुशबुदार पुष्पमाल हूँ मैं
विधानसभा,संसद में गूंजती
गरीबी की जयकार हूँ मैं
पैकेजों की घोषणाओं में होता
अग्रणी नाम जिसका
वो पहचान हूँ मैं
पर,बस अदना मजदूर हूँ मैं।
मारा न था,अबतक बीमारी ने
पर मारा बेरोजगारी ने
अंधकारमय भविष्य की लाचारी ने!
सूझा फिर एक छाँव अपना,
याद आया फिर गाँव अपना,
दो जून रोटी की खातिर
मैं भी तुम सब जैसे,शहर गया
क्या मैंने कोई गुनाह किया?
तुम सब जैसे बस,इंसान हूँ मैं!
बस अदना मजदूर हूँ मैं।
ज़ेहन में कौंधता
एक सवाल पूछता हूँ मैं,
क्या बस प्रवासी हूँ मैं?
प्रान्तों गाँवो में बंटा
बिहारी,गुजराती, उड़ीया, राजस्थानी हूँ मैं?
जानता हूँ,गरीब,लाचार हूँ मैं
आपकी नज़रों में बेमानी हूँ मैं
पर क्या नहीं हिंदुस्तानी हूँ मैं?
क्या नहीं हिंदुस्तानी हूँ मैं?
©अनुपमा झा