Tuesday 4 February 2014

वसंत

शाखों के पत्ते गिरने से
वृक्ष नहीं कभी घबराता है
है उसे ज्ञात ये
पतझड़ के बाद ही
वसंत फिर आता है ..........
आयेंगी नयी कोंपले
फिर खिलेंगे, नए फूल
हर शाख पर होगी
परिदों की गुंजन
और कलरव से उनके
पेड़ जायेगा , दुःख अपने
पतझड़ के भूल ........
बस ऐसा ही है मानव -जीवन
और ऋतु परिवर्तन है
हमारे जीवन का मूल.......
बने जिससे , राह अनुकुल
कैसी भी हो परिस्थितियां प्रतिकुल
                   बस यूं ही
सबके जीवन में आए वसंत
जो दे  सबको खुशियाँ अनंत.......


Sunday 2 February 2014

अप्रत्यक्ष के लिए

प्रत्यक्ष को अनदेखा कर
अप्रत्यक्ष को संवारने चले हैं
इस जन्म का पता नहीं
अगला जन्म सुधारने चले हैं.......
चल पड़ते हैं असंख्य
लगाने को डुबकियाँ
आस्था के संगम में
मन्नतों से मन को
बहलाने चले हैं.........
रहे न कोई चाहत अधूरी
हो जाएँ हर ख्वाहिशें पूरी
डूबो कर बस तन अपना
जन्म- जन्मान्तर तक
नसीब अपना सुधारने चले हैं ..........
होता है यहीं
कर्मों का लेखा-जोखा
पर, हम शायद
धो पुराने पाप
नए के लिए
तैयार हो चले हैं ..........