चलो एक कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ
आकार तो बना लिया
पर भाव कहाँ से लाऊँ?
आँखों मे तस्वीर के
माँ का प्यार कहाँ से लाऊँ?
बनाती हूँ,मिटाती हूँ
पर कुछ है अधूरा सा
जो मैं रंग नहीं पाती हूँ
चलो एक कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ।
तस्वीर में माँ को सजाती हूँ
बड़ी सी बिंदी भी लगाती हूँ
पर काम में लगे माँ के
हाथों से फैले ,बिंदी की सुंदरता
नहीं ,तस्वीर में उतार पाती हूँ।
लगती तस्वीर कुछ अधूरी सी
नहीं माँ तेरी जैसी पूरी सी
लाल रंग से होठों को सजाती हूँ
पर तुम्हारी स्मित
नहीं चित्र में उतार पाती हूँ
फिर भी कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ।
प्रेम,समर्पण, निश्छलता, ममता
सारे गुण सिमटे माँ तुममे
नहीं ये सारे भाव
कैनवस पर अंकित कर पाती हूँ
फिर भी कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ।
बन गयी तस्वीर अब जो
सब कोने से उसे निहारती हूँ
पर कुछ है अब भी
अधूरा सा
जो समझ मैं नहीं पाती हूँ।
सारे कृत्रिम रंगों को मिला जुलाकर
एक माँ की तस्वीर बनायी
पर अपनी कूची से
विधाता के बनाये "माँ" से
कहाँ मैं अच्छा चित्रित कर पायी!!
माँ की तस्वीर बनाती हूँ
आकार तो बना लिया
पर भाव कहाँ से लाऊँ?
आँखों मे तस्वीर के
माँ का प्यार कहाँ से लाऊँ?
बनाती हूँ,मिटाती हूँ
पर कुछ है अधूरा सा
जो मैं रंग नहीं पाती हूँ
चलो एक कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ।
तस्वीर में माँ को सजाती हूँ
बड़ी सी बिंदी भी लगाती हूँ
पर काम में लगे माँ के
हाथों से फैले ,बिंदी की सुंदरता
नहीं ,तस्वीर में उतार पाती हूँ।
लगती तस्वीर कुछ अधूरी सी
नहीं माँ तेरी जैसी पूरी सी
लाल रंग से होठों को सजाती हूँ
पर तुम्हारी स्मित
नहीं चित्र में उतार पाती हूँ
फिर भी कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ।
प्रेम,समर्पण, निश्छलता, ममता
सारे गुण सिमटे माँ तुममे
नहीं ये सारे भाव
कैनवस पर अंकित कर पाती हूँ
फिर भी कोशिश करती हूँ
माँ की तस्वीर बनाती हूँ।
बन गयी तस्वीर अब जो
सब कोने से उसे निहारती हूँ
पर कुछ है अब भी
अधूरा सा
जो समझ मैं नहीं पाती हूँ।
सारे कृत्रिम रंगों को मिला जुलाकर
एक माँ की तस्वीर बनायी
पर अपनी कूची से
विधाता के बनाये "माँ" से
कहाँ मैं अच्छा चित्रित कर पायी!!