Friday 31 March 2017

आधे अधूरे दो शब्द..

कागज़ कलम लेकर बैठी थी,कुछ भाव घुमड़ रहे थे,पन्नो पर बिखरने को तैयार।मुझे भी जल्दी थी उनको उकेरने की।तभी कुकर की सीटी ने ध्यान भंग किया,भागी किचन की ओर ये सोचती कुछ जल तो नहीं गया?हाँ कुछ जला तो है जो पकने को रखा था।जो मन में पक रहा था उसको परे रख फिर लग गयी जो जला उसकी भरपाई करने।
पुनः बैठी उमड़ते घुमड़ते विचारों को कुछ रूप देने और बज गयी घंटी दरवाज़े की।धोबी आया कपडे लेने देने।धोबी के लाये कपडे को सहेजकर रखूँ पहले,अपने शब्दों को तो फिर सहेज लूँगी ,यह सोचकर सबकुछ करीने से रखा और फिर बैठी अपनी लेखनी सहेजने। दो चार पंक्तियाँ और जुडी, मन खुश हो ही रहा था कि फिर घंटी की आवाज़ ने फिर एकाग्रचित्तता को तोड़ा। अब कौन आया? सोचती मन ही मन खीझती फिर दरवाज़े की और चली। इस बार मेरी वाचाल पड़ोसन आयी थी। सच कहूँ उनका यूँ बेवक़्त आना मुझे बिलकुल नहीं सुहाया था।पर सामाजिकता तो निभानी थी।वो मोहल्ले भर की बातों को तड़का लगा सुनाने में मशगूल और मैं सृजन की पीड़ा से जूझ रही थी।
उनके जाते ही मैंने घडी की ओर देखा। मुझे प्रसव सी पीड़ा हो रही थी, व्याकुल था मन कुछ सृजन करने को पर अब समय नहीं ,शाम हो चली है ।सबके घर आने का समय हो चला। अब कल देखूंगी ,समय अगर मिला तो लिखूंगी..............
बस यूँ ही कभी कभी रह जाते हैं 
हमारे दो शब्द आधे अधूरे......

Wednesday 29 March 2017

चाँद

चाँद की चाँदनी ने
किसे नहीं लुभाया है
चाँद ओ चाँद
तू सबके मन को भाया है
बचपन में बन चंदा मामा
सबने तुमसे दूध मलाई खाया है
बादलों संग लुका- छिप्पी खेल
बाल मन में तुमने
अनगिनत प्रश्न उठाया है
यौवन की तो पूछो मत
इसने किसे नहीं बहकाया है?
नीरव,शीतल चाँदनी रात
किस मन को नहीं भाया है
देकर चाँद की उपमा हमने
कितने दिलों को
बहलाया फुसलाया है
कितने प्रेम संबंधों को
इसकी रौशनी ने जलाया है
अपनी सुंदरता से सबको
इसने ललचाया है
कवियों की कल्पना को
इसने और भड़काया है
सागर से भी नहीं अछूता
इसका साया है
चाँदनी रात में सागर की लहरों ने
कितनों का दिल धड़काया है
उफान सागर की
मिलने की चाँद से
तूफ़ान कई लाया है
लोगों को सहमाया है
पर सागर की मुहब्बत है ,चाँद से
वो कहाँ बाज़ आया है
अपनी शीतलता से अगन लगाता
चाँद हाँ सिर्फ चाँद
यह काम कर जाता है.....



Monday 27 March 2017

दोस्त

एक दोस्त है मेरा
मेरे सारे सुख दुख
अब बांटता वही
जो भी है कही अनकही
सिमटकर लिपटकर उससे
हाल ए दिल उकेरती हूँ
सिर्फ दर्द ही नहीं
खुशियाँ भी बटोरती हूँ
मैं कुछ भी करूँ
उसे नहीं कुछ ऐतराज़
इसलिए शायद बन गया
वो मेरा हमराज़
जब तक चलेगीं अंगुलियाँ मेरी
शब्द मेरे बनकर
साथ वो निभायेगा
और गर न चले तो
मेरे अश्क बनकर
फिर मुझमे घुल जायेगा
औरों की तरह वो
मुझे छोड़ेगा नहीं
मेरा दिल और
मुझसे रिश्ता तोड़ेगा नहीं
हमसाया,हमदम,हमराज़
है मेरा
हाँ वो दोस्त
"अलफ़ाज़" है मेरा।

चूड़ियाँ

भारतीय संस्कृति का एक अहं
हिस्सा है चूड़ियाँ
रीत और परंपराओं का
किस्सा है चूड़ियाँ,
कवियों के श्रृंगार रस में
खनकती है चूड़ियाँ
मधुर लय ताल में
बजती है चूड़ियाँ,
सब रंगों में रंगकर
इंद्रधनुष से भी
सुन्दर लगती है चूड़ियाँ
नववधू का श्रृंगार बन
छनकती है चूड़ियाँ
एक जिम्मेदारी का एहसास
कराती है चूड़ियाँ
पूरब हो या पश्चिम
उत्तर हो या दक्षिण
परिधान कुछ भी हो
कलाईयों पर सबके सजती
है ये चूड़ियाँ
औरतों का प्यार है
ये चूड़ियाँ
प्रेम का मनुहार सा है
ये चूड़ियाँ

Thursday 23 March 2017

अच्छा लगता है

डूबना तेरे ख्यालों में
अच्छा लगता है
यादों के समंदर से
सीपियों को चुनना
अच्छा लगता है
कुछ सीपियां चुभ भी जाती है
कुछ मोतियों सी चमक जाती है
उन मोतियों को चुनना
अच्छा लगता है
समंदर सी लहरें उठती दिल में
उन लहरों में खुद को भिंगोना
अच्छा लगता है
जब मिलता समंदर के पानी से
मेरी आँखों का पानी
रंग एक,स्वाद एक
मिलाकर दोनों को चखना
अच्छा लगता है
कभी डूबना तुममे
कभी किनारे पर
यथार्थ से टकराना
दोनों की टकराव का चोट
अच्छा लगता है
बस यादों के समंदर में
आते जाते हिलकोरे लेती
लहरों से खेलना
अच्छा लगता है
खुद को तुझ में समाकर
तेरी सुनहरी रेत में
सनकर, लथपथ
तेरे रंग में खुद को रंगना
अच्छा लगता है
डूबना तेरे ख्यालों में
अच्छा लगता है
          बस
अच्छा लगता है।।।।।

Sunday 19 March 2017

क्या हो तुम

क्या हवा हो तुम
रहते हो मेरे आसपास
पर दिखते नहीं
या वो घटा हो
जो उमड़ती है
बरसती नहीं
खुश्बू हो क्या
जिसे छू नहीं सकती
पर रूह में बसा सकती हूँ
या वो पेड़ हो
जिसकी डालियों पर
झूल नहीं सकती
या कोई  बुरा ख्वाब
जिसे मैं देख नहीं सकती
या ऐसी कोई नज़्म हो तुम
जिसे मैं गा नहीं सकती
या हो तुम
कोई गीली लकड़ी
जिससे मैं सुलग
नहीं सकती
मेरे ऐसे ही कितने
उलझे सवाल का
जवाब हो तुम
  सुनो बस
एकबार बता दो न
की मेरे क्या हो तुम?

Thursday 16 March 2017

मैं और तू

मैं तुझमें तू मुझ मे
ये हमसे बेहतर
जाने कौन
गर खफा हो मुझसे
तो कह दो
तुमको मुझसे बेहतर
पेहचाने कौन
'हम' से 'मैं'
न बन
ये डोरी बहुत उलझाती है
उलझ गए तो फिर इसको
सुलझाए कौन
बातों से बातों मिलती है
कुछ नई राहें जुड़ती है
साधने से यूँ चुप्पी
क्या हो जायेगी
सब बातें गौण
सब कुछ जुड़ा
तुमसे मेरा
अब क्या तेरा
और क्या मेरा
बनाकर दूरी, न रह यूँ
खामोश और मौन
तेरा मेरा रिश्ता
सबसे न्यारा ,सबसे प्यारा
ये तुझसे बेहतर
जाने कौन
मैं तुझमे, तू मुझमे
ये हमसे बेहतर
माने

Sunday 5 March 2017

रफ कॉपी

घर के किसी कोने मे
दबी दबाई
सहमी सकुचाई
मुझे मिली पड़ी पुरानी 
"रफ कॉपी"
बचपन का किस्सा है
स्कूल का अहं हिस्सा है
यह "रफ कॉपी"
साफ़ सुथरी थी जहाँ
बाक़ी विषयों की कॉपी
जिल्द चढ़ी 
अकड़ी -अकड़ी,
वहीं हुआ करती थी
मस्त अल्हड़
यह "रफ कॉपी"
न घरवालों के नज़र का खौफ
न किसी टीचर के 
रोक टोक की परवाह
शायद इसलिए थी
जरा वो लापरवाह,
पर होती सबसे प्यारी थी 
वही हमारी 
यह "रफ कॉपी"
सब विषयों का सार होता था
पिछले कुछ पन्नो मे
हमारी शैतानियों का 
विस्तार होता था
राजा,मंत्री,चोर,सिपाही
आज भी दे रहा 
इस बात की गवाही,
पढ़ाई के साथ साथ 
खर्ची थी हमनें
इन खेलों पर भी स्याही
कभी किसी गाने की
दो चार पंक्तियाँ 
लिख जाया करते थे
कभी किसी दोस्त को 
कुछ लिखकर
चिढ़ाया करते थे
सब किस्सों का सारांश
यह "रफ कॉपी"
गणित के सवालों मे
जो खर्चते थे दिमाग
उसकी जोड़ घटाव का हिसाब
यह"रफ कॉपी"
चित्रकारी के जरिये
हमारे मन का इज़हार
यह"रफ कॉपी"
हमारे बचपन के दिनों के 
अल्हड़पन के गवाह 
यह "रफ कॉपी"
       काश
ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर
होती साथ हमारी
ऐसी ही कोई 
एक "रफ कॉपी"
दुःख,तकलीफ,परेशानियों
को डाल कॉपी के 
अंतिम पन्ने पर
सकून से हमें 
जीने देती हमारी
ज़िन्दगी की 
यह "रफ कॉपी".......


Thursday 2 March 2017

फाग

अरी ओ सखी
लेकर आ जरा गुलाल
अरे रख परे
अपना मलाल
चल झट झटक
रख अपनी परेशानियों 
को पटक
क्यूँ रही अब भी 
तमतमा
चल निकाल दे 
दिल मे जो भी है
जमा जमा
डाल मन की बलाओं को
होलिका के आगोश मे
जा फिर खेल रंग
पी के संग
पूरे होश ओ जोश मे
कर सार्थक
फाग के राग को
प्रेम की आग को
चल अब 
और न इतरा
न पिया को तड़पा
पिया संग चहक चहक
महक महक
जरा बहक बहक
ओ सखी 
न ठमक ठमक 
चल अब
मटक मटक
चुड़ियों सी
खनक खनक
पिया के प्रेम मे
लौ सी दमक दमक
अरी ओ सखी
अब ले आ गुलाल
जो जिए वही तो
खेले फाग!!!