Wednesday 16 July 2014

मुक्ति

किस मुक्ति की बात करें हम
जब मन ही नहीं मुक्त ,इस संसार से
क्यूँ कर जाएँ काबा काशी
जब फंसा है मन
इस माया जाल में
खूबियों -खामियों से युक्त
कैसे हो ये मन मुक्त ?
जब तक ना होंगे उन्मुक्त हम
हो नहीं सकते मुक्त हम .........

Tuesday 10 June 2014

वक़्त

वक़्त के इर्दगिर्द घूमती
हमारी आस है ,
जो बजे सबके लिए
यह ऐसा साज़ है .....
कोई गुजरा वक़्त ,कभी
अपनी खट्टी -मीठी यादों से
गुदगुदा जाता है
कभी बन चादर
यादों को पसार जाता है
कभी अनजाना वक़्त
कई कल्पनाएँ जगा जाता है
कई सपने दिखा जाता है
ग़र, टूट गए सपने तो
उन्हें भी वक़्त का चोला
पहना दिया जाता है
और वक़्त के साथ
आगे बढ़ने को कहा जाता है
कहते हैं यही सभी
ये वक़्त ,वक़्त की बात है
हर वक़्त ,वक़्त नहीं देता साथ है
पर हम सबको
हर वक़्त , बस एक
अच्छे वक़्त की ही तो आस है
यह वक़्त ही तो
हम सबके जीवन का
अंत और आग़ाज़ है.............

Friday 23 May 2014

तुम्हारा साथ

लगता ऐसे ,जैसे
कल की ही बात है ,
तुमने थामा मेरा हाथ है ,
और चल पड़े, उस सफ़र को
जिसका नाम "जीवन का साथ" है
सफ़र में कई पड़ाव आए
ज़िन्दगी के समुन्दर में
लहरों जैसे उतार-चढाव आए
अनगिनत खुशियों के सैलाब आए
कभी संग अपने
मन-मुटाव भी लाए,....
            पर
तैरकर हमने संग
अबतक के सफ़र को पार लगाए,.......
बस यूँ ही थामे रखना
अभी ज़िन्दगी के कई पड़ाव आएंगे
कभी हमें मज़बूत
कभी कमज़ोर बनाएँगे
ऐसे पल में
एक -दूजे का साथ
हौंसला दे जाएँगे
और हम संग यूँ ही
ये जीवन साथ बिताएंगे ........

Saturday 17 May 2014

उधेरबुन

अपने ही विचारों में
विचर रही हूँ
चेतन- अचेतन में
खुद को ढूंढ रही हूँ ,
जब पा लेती हूँ ,
ख़ुद को ,
तो जी लेती हूँ
कभी ,सबकुछ अनदेखा कर
आँखें मूँद लेती हूँ ......
हो गए हैं , बेतरतीब से
कुछ पन्ने ज़िन्दगी के ,
उन्हें सहेजने की
कोशिश करती हूँ ......
हर पन्ने का अपना हिस्सा ,
हर हिस्से का अपना किस्सा,
खुद को सुनाकर,
खुद को समझाकर
एक कहानी बुन लेती हूँ
बस यूँ ही
अपने विचारो में
विचर लेती हूँ.........

डोर

जीवन की डोर
नहीं है कमज़ोर
ग़र जीने का हो
हौंसला पुरजोर.......
कभी हँसकर , कभी रोकर
कभी मचा कर शोर
करता हर इंसा
अपनी कोशिश, लगाता अपना ज़ोर.....
 फ़िर सब छोड़
इसी जीने में
लग जाती है
आगे बढ़ने की होड़........
जो रख देता है
हम इंसा को तोड़ मरोड़......
ऐसे ही किसी लम्हे में
कहता कोई
जीवन की डोर ,बहुत कमज़ोर...
                पर
जीवन की डोर ,नहीं कमज़ोर
बस हो ग़र ,सही दिशा मे
उसकी बागडोर..............

Tuesday 4 February 2014

वसंत

शाखों के पत्ते गिरने से
वृक्ष नहीं कभी घबराता है
है उसे ज्ञात ये
पतझड़ के बाद ही
वसंत फिर आता है ..........
आयेंगी नयी कोंपले
फिर खिलेंगे, नए फूल
हर शाख पर होगी
परिदों की गुंजन
और कलरव से उनके
पेड़ जायेगा , दुःख अपने
पतझड़ के भूल ........
बस ऐसा ही है मानव -जीवन
और ऋतु परिवर्तन है
हमारे जीवन का मूल.......
बने जिससे , राह अनुकुल
कैसी भी हो परिस्थितियां प्रतिकुल
                   बस यूं ही
सबके जीवन में आए वसंत
जो दे  सबको खुशियाँ अनंत.......


Sunday 2 February 2014

अप्रत्यक्ष के लिए

प्रत्यक्ष को अनदेखा कर
अप्रत्यक्ष को संवारने चले हैं
इस जन्म का पता नहीं
अगला जन्म सुधारने चले हैं.......
चल पड़ते हैं असंख्य
लगाने को डुबकियाँ
आस्था के संगम में
मन्नतों से मन को
बहलाने चले हैं.........
रहे न कोई चाहत अधूरी
हो जाएँ हर ख्वाहिशें पूरी
डूबो कर बस तन अपना
जन्म- जन्मान्तर तक
नसीब अपना सुधारने चले हैं ..........
होता है यहीं
कर्मों का लेखा-जोखा
पर, हम शायद
धो पुराने पाप
नए के लिए
तैयार हो चले हैं ..........

Sunday 26 January 2014

क़ुदरत और जीवन

सूखे पेड़ो पर फिर से
नए पत्ते आने लगे हैं
मौसम ने भी ली है करवट
फूल भी खिलखिलाने लगे हैं
देख खिलते फूलों को
भौंरे भी गुनगुनाने लगे हैं
चिड़ियों की कलरव से
मन -मयूर नाचने लगे हैं
गुलाबी सर्दी की धूप में
मानो सब नहाने लगे हैं
देख इन्हें ये हमें
कुछ याद दिलाने लगे हैं
क्या प्रकृति दिलाता नहीं
हमें यह एहसास ?
ऐसा ही है जीवन
बना लो समय रहते
इसको  ख़ास
क्या पता
कब झड जाये पत्ते
कब खिल जाए फूल
बस जी लो जीवन
सब कुछ भूल ...........

Wednesday 22 January 2014

हालात

नजदीकियों से भी कभी
बढ़ जाती है दूरियाँ
और दूरियों से नजदीकियाँ.......
क्या पता कब किस
इन्सान की होती है
क्या मजबूरियाँ?
कभी बन जाते हैं
ऐसे हालात
नहीं मिलते कभी ,ज़ज़्बात
साथ रहकर भी होती हैं
साथ हमारे, हमारी तन्हाइयां..........
उम्र गुज़ार देते हैं
दूरियों के साथ
कुछ मजबूरियों के साथ
और वक़्त लेता रहता है
यूँ ही अंगराईयाँ.........
कर समझौता
मानते हैं उसकी हर चुनौतियाँ
और करते हैं सब
वक़्त के साथ  अठखेलियाँ........


Wednesday 15 January 2014

बहाव

रोको नहीं विचारो को
बाँधो नहीं बहावो को
      क्या पता
रुके पानी सी कभी
थम जाये ज़िन्दगी
बिना नए एहसास के
बर्फ सी ठंडी
बन जाये ज़िन्दगी.......
कभी कोई विचार
बन एक पत्थर
शांत ज़िन्दगी में
हलचल मचा जाता है
कभी किसी रिश्ते की गर्मी से
पिघल जाती है ज़िन्दगी .........
     जरूरी नहीं
हर ठहराव, पड़ाव हो
हर पड़ाव में उठाव हो
गिरकर उठने , उठकर गिरने
के सफ़र का नाम, है ज़िन्दगी
ठहरे नहीं बहते पानी का
नाम ही तो है ज़िन्दगी.........


तुम्हारी कविता

मैं एक शब्द बन
हर पन्नों में
बिखरना चाहती हूँ
तुम्हारी अनोखी रचना
बनना चाहती हूँ
      होंगे जहाँ
एहसास मेरे ,भाषा तुम्हारी
जिज्ञासा मेरी , शब्द तुम्हारे
अन्तर्द्वंद मेरा ,उत्तर तुम्हारे
लड़कपन मेरा ,मजबूती तुम्हारी
कल्पना मेरी , पंख तुम्हारे
बन तुम्हारी कविता
मैं "शब्द" हर जगह पहचान
अपनी छोड़ना चाहती हूँ
 एक सुंदर सी रचना
रचना चाहती हूँ
उसी में रस- बस जाना चाहती हूँ
मैं एक शब्द बन
हर पन्नों में बिखरना चाहती हूँ ........
हर पन्नों में बिखरना चाहती हूँ ..........

आस

एक उम्मीद की प्यास
लिए बैठे हैं
हर बात में
औरो की आस
लिए बैठे हैं
अपने ज़ज्बात कर लिए हैं ज़ज्ब
हर समझौते से इकरार कर बैठे हैं
खुले आसमान में उड़ना
पसंद किसे नहीं ?
पर अपने पिंजरे से ही
प्यार कर बैठे हैं .....
पिंजरे में रहकर भी
भूख बढ़ी है ,विचारों की
प्यास लगी है भावों की
बिखरे हैं ख्वाहिशों के दाने
उन्हें चुनने को बस
तैयार बैठे हैं .........

पुनः

कहीं कुछ दब गया था
दुनियादारी की सांठ- गाँठ में
एक धागा कहीं उलझ गया था
गाँठ सी लग गयी थी
सारी भावनाए उलझ गयी थी
                   अब
पुनः गाँठ खुल गयी है
भावनाए मचल गयी हैं
बहने लगी है शब्दों की धार
जिसे दिया था
कहीं मैंने मार........
अभी लेखनी चल पड़ी है
सृजन ही सृजन है
ज़िन्दगी दे दे कुछ पल मुझे
अपनी लेखनी के साथ उधार .......