मैं रावण
"न भूतो न भविष्यति"
यह मेरा अभिमान
सार्वकालिक पंडित महान
वेदों का विद्वान प्रकांड
आयुर्वेद का ज्ञान अपरिमित
चिकित्सा ज्ञान भी असीमित
पद्य में पारंगत
संगीत,वाद्य में नही
कोई कर सकता था
मेरी संगत
सोने की लंका का अधीश्वर
मानते जिसका गुण सर्वेश्वर
मैं दशानन
मैं लंकापति रावण।
युगों से मुझे जलाते हो
बुराई का पर्याय मानते हो
मानता हूँ मैं
हुआ मुझसे
मर्यादा का हनन
क्रोध में था
मैं दशानन!
बहन की इज़्ज़त का
करना था सम्मान
चूर्ण हुआ था
एक राजा का स्वाभिमान।
बस क्रुद्ध था मैं
हाँ
हरा था सीता को मैंने
किन्तु
नही किया सीमा उल्लंघन
नही किया चीर हरण
मुझमें अभिमान था
अपने स्वर्ण नगरी का
गुमान था!!
पर इस युग के मानव
तुम ये बताओ
युगों से करके
मेरा दहन
किया क्या तुमने ग्रहण??
साल में एक रावण जलाते हो
पर सौ रक्त बीज पालते हो
सब देखता हूँ मैं
और हँसता हूँ मैं
छोटी छोटी कन्याओं के साथ
होते देख बलात्कार
रोता भी हूँ मैं
अपने बुजुर्गों को भी
तड़पाते हो
अपने मन मे
कितने रावण छुपाते हो
मैं पर्याय हूँ
बुराई का
फिर क्यों नहीं
अपने अंदर के
रावण को ,मारते हो?
क्यों नही उसे जलाते हो?
मैं बहुत बुरा था
यही सदियों से
चिल्लाते हो!
कितनी बुराइयाँ
गिनवाऊँ तुम्हारी?
तुम्हारे अवगुण हो गए हैं
तुम्हारे गुणों से भारी!
नहीं था मैं अत्याचारी
नही था मैं व्यभिचारी
तुम मनुष्य पहले
अपने अवगुणों को मारो
फिर मेरा पुतला जलाओ
"न भूतो न भविष्यति"
यह मेरा अभिमान
सार्वकालिक पंडित महान
वेदों का विद्वान प्रकांड
आयुर्वेद का ज्ञान अपरिमित
चिकित्सा ज्ञान भी असीमित
पद्य में पारंगत
संगीत,वाद्य में नही
कोई कर सकता था
मेरी संगत
सोने की लंका का अधीश्वर
मानते जिसका गुण सर्वेश्वर
मैं दशानन
मैं लंकापति रावण।
युगों से मुझे जलाते हो
बुराई का पर्याय मानते हो
मानता हूँ मैं
हुआ मुझसे
मर्यादा का हनन
क्रोध में था
मैं दशानन!
बहन की इज़्ज़त का
करना था सम्मान
चूर्ण हुआ था
एक राजा का स्वाभिमान।
बस क्रुद्ध था मैं
हाँ
हरा था सीता को मैंने
किन्तु
नही किया सीमा उल्लंघन
नही किया चीर हरण
मुझमें अभिमान था
अपने स्वर्ण नगरी का
गुमान था!!
पर इस युग के मानव
तुम ये बताओ
युगों से करके
मेरा दहन
किया क्या तुमने ग्रहण??
साल में एक रावण जलाते हो
पर सौ रक्त बीज पालते हो
सब देखता हूँ मैं
और हँसता हूँ मैं
छोटी छोटी कन्याओं के साथ
होते देख बलात्कार
रोता भी हूँ मैं
अपने बुजुर्गों को भी
तड़पाते हो
अपने मन मे
कितने रावण छुपाते हो
मैं पर्याय हूँ
बुराई का
फिर क्यों नहीं
अपने अंदर के
रावण को ,मारते हो?
क्यों नही उसे जलाते हो?
मैं बहुत बुरा था
यही सदियों से
चिल्लाते हो!
कितनी बुराइयाँ
गिनवाऊँ तुम्हारी?
तुम्हारे अवगुण हो गए हैं
तुम्हारे गुणों से भारी!
नहीं था मैं अत्याचारी
नही था मैं व्यभिचारी
तुम मनुष्य पहले
अपने अवगुणों को मारो
फिर मेरा पुतला जलाओ