यूँ ही
सोचो अगर
इंद्रधनुष की तरह
मन के भाव भी हमारे
सतरंगी होते ,तो क्या होता?
पहचाने जाते, रंगों के छलकने से
छुपाना उनको,
कितना मुश्किल होता!
अश्क़ जब हमारे छलकते
भाव अपने रंगों के संग
उनमे ढलकते!
सोचो जो तकिया है
हमारा हमराज़
उस तकिये का रंग
कैसा होता ?
रोज़ नए रंगों में रंगा मिलता
कभी सतरंगी रंगों में
सना मिलता
जो नहीं कर पाते बयां
लफ्ज़ हमारे
उन एहसासों का तकिया
कैनवस होता.....
सोचो अगर
इंद्रधनुष की तरह
मन के भाव भी हमारे
सतरंगी होते ,तो क्या होता?
पहचाने जाते, रंगों के छलकने से
छुपाना उनको,
कितना मुश्किल होता!
अश्क़ जब हमारे छलकते
भाव अपने रंगों के संग
उनमे ढलकते!
सोचो जो तकिया है
हमारा हमराज़
उस तकिये का रंग
कैसा होता ?
रोज़ नए रंगों में रंगा मिलता
कभी सतरंगी रंगों में
सना मिलता
जो नहीं कर पाते बयां
लफ्ज़ हमारे
उन एहसासों का तकिया
कैनवस होता.....