Tuesday 28 November 2017

बच्चनशाला एक श्रद्धांजलि

*क्या भूलूँ क्या याद करूँ*
कैसे *नीड़ का निर्माण* किया
फिर जा * बसेरे से दूर*
तुम्हें शब्दों में आह्वान किया
यादों को बना *मधुशाला*
मैंने उनका मदिरापान किया।

"याद तुम्हारी लेकर सोया
याद तुम्हारी लेकर जागा"
भावों को उकेरकर, शब्दों में
लिख *प्रणय पत्रिका*
दे *मधुबाला * को आया
"और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती है"
गुजरा जो तुम तक पहुँचने में
*अग्निपथ* में भी झुलसा नही
पर"बुझ नहीं पाया अभी तक
उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने"

*मधु कलश* सी भरी थीं यादें
*सतरंगिनी*इंद्रधनुषी सौगातें
होता जब *आकुल अंतर*
खुद को पाता * धार के इधर उधर*
*एकांत संगीत* में लीन
याद आता * वो तेरा हार*
*सूत की माला* *खादी के फूल * वाला
और ताकता तुम्हें मैं मतवाला ।

कभी याद करता
वो तुम्हारी * त्रिभंगिमा*
लाचार * चार खेमे चौंसठ खूँटे* से बंधे
महसूसता * कटती प्रतिमाओं की आवाज़*
तुम्हारे * उभरते प्रतिमानों के रूप*
हर बार एक नया भाव लिए
*आरती और अंगारे* सी तुम
हो जैसे *बुद्ध और नाचघर*
बताओ न * क्या भूलूँ क्या याद करूँ* मैं
इस * निशा निमंत्रण* में
कोई * एक गीत* नहीं यादें
बस आती है तो चढ़ती जाती है
*दशद्वार से सोपान तक*...........


Monday 6 November 2017

सैनिक की पत्नी

मैं सैनिक की पत्नी हूँ
मैं सबकुछ संभालती हूँ
सम, विषम हर परिस्थितियों में
मैं मुस्काती हूँ।
देश की सीमा 'ये' संभाले
मैं घर की सीमा संभालती हूँ
माँ के संग, पिता की भी
भूमिका बखूबी निभाती हूँ।
सास ,ससुर को न खले
कमी बेटे की
हर पल ये ध्यान रखती हूँ
बहु संग बेटा बन
सारे कर्तव्य निभाती हूँ।

रहते जब सीमा पर 'ये'
सब कुशल है
सब कुशल होगा
की कामना से
उम्मीदों की दीप जलाती हूँ
पर नारी मन जब घबराता
एक अनजाने भय से डरता
नमी अपनी आँखों की छुपा सबसे
एक मुस्कुराहट ओढ़ लेती हूँ
सैनिक की पत्नी
वामा उनकी,मैं उनकी अर्धांगनी
कैसे मैं कायर बन सकती हूँ?
सोच से ऐसे
खुद की हिम्मत बनती हूँ
'उनको' हिम्मत देती हूँ।
घर बाहर दोनों सम्भालती
'मेरी चिन्ता छोड़ो'
ऐसा कहकर 'उनको'
सारी घर की परेशानियों से मुक्त रखती हूँ
मैं सैनिक की पत्नी
मैं सब सम्भाल लेती हूँ।

नहीं होता आसान
सैनिक का खानाबदोशी जीवन
संग उनके बन सहगामिनी,सहचरी
पहाड़,जंगल, रेगिस्तान
सब मैं भी भटकती हूँ
नहीं ढूंढती मैं
भोग विलासिता
जंगल मे मंगल कर लेती हूँ!
कच्चे-पक्के, टूटे- फूटे
मकान को भी
घर बना लेती हूँ
मैं सैनिक की पत्नी हूँ
मैं सब कुछ सम्भालती हूँ
इसलिए अपने वीर पति की
वीरांगना गर्व से कहलाती हूँ।।।।