Friday 22 November 2013

उडान

पंखहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
शब्दहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
आह, कितना सुन्दर अनुभव था
सिर्फ ,मैं थी
और मेरा दर्शन था ,
बस, अपने भावों का प्रदर्शन था .....
कल्पना की कूची से
शब्दों का रंग बिखेरती
जो न जाना किसी ने
उन भावों को कुरेदती,.....
न कोई संकोच ,
न कोई दुविधा,
अपने शब्दों से लिपटती.........
दबे -दबाए, गड़े- गड़ाए
कई भावों को समेटती
न किसी का भय
न किसी की चिंता
भारहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
शब्दहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
   सोचती हूँ
न होती ये कल्पना
तो जीवन कितना नीरस होता
खाली दिल , खाली मन
कितना बेरंग होता !
कहाँ जाकर इंसा अपने
खवाबों का पंख फ़ैलाता?
कहाँ अपने इन्द्रधनुषी
सपनों को सजाता?
बहुत सुख है उड़ने में
दूर -दूर तक उन्मुक्त उडान
हाँ, पंखहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
असीम नभ ,असीम जग
बस तान-वितान ............
                

Monday 18 November 2013

परछाईं

हैं हमारे सुख -दुःख
हमारी परछाइयों की तरह
हमेशा साथ हमारे चलते
कभी बढ़ते-कभी घटते
सूरज की ओट लिए
कभी हमसे आगे
कभी पीछे रहते
जैसे हो , आँख-मिचौली खेलते .......
कभी जैसे खुद की परछाईं डराती है
कभी बन अजीबोगरीब हंसाती है
वैसे ही हम डर जाते दुःख में
और कभी हँसते सुख में..............
हो नहीं सकता दूर जैसे
हमसे हमारा साया
वैसे ही है ये
सुख -दुःख की माया
बढ़ते- घटते चाँद की तरह
कभी बढ़ेंगे, कभी घटेंगे
पर हमेशा साथ रहेंगे............
बस नहीं हमारा
हमारी बनती बिगरती परछाइयों पर
सुख दुःख की बहती पुरवाइयो पर ...............

Wednesday 13 November 2013

मनमंदिर

सारे संत,ग्रंथ कहते यही
अपने अन्दर ही है ईश्वर,
उसे ढूंढो तो सही.
पर हममें से इसपर
है कितनों को यकीं?
ढूंढते हैं उसे
जो है कण-कण में
हर जगह  हर कहीं.......
कभी हम ढूंढते उसे
मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारों में
कभी गिरजा कभी मजारों में,
है किसकी कितनी आसक्ति?
है किसकी कितनी भक्ति?
तय यह होता नहीं
चंदा -चढ़ावों से
ना पाखंडी पंडितों के बहकावे से ,
ना ही दान -दिखावे से .........
हजारों भूखे मर रहे हैं
पैसे पैसे को तरस रहे हैं
पर, मंदिरों में नोट बरस रहे हैं
लोगों के पास खाने को नहीं
मंदिरों में दूध बह रहे हैं...........
जिस ईश्वर ने दिया सबकुछ
उसे क्या दिखाना है ?
पर ये समझे कौन?
और किसे समझाना है ?
बुद्ध ने जो मार्ग दिखाया
उसमे नहीं मूर्ति का अस्तित्व बताया ,
पर, लोगों ने बनाकर उनकी ही मूर्ति
उनको ही पूजनीय बनाया ...........
क्या नहीं यह विरोधाभास ?
पर है किसे यह आभास?
ऐसे एक नहीं कई किस्से हैं,
जिस इतिहास के हम हिस्से हैं.
पर , सच -सच यह बताना
किस ग्रंथ में ऐसा लिखा नहीं ?
है अन्दर हमारे ही ईश्वर
क्या सब विद्वानों ने यह कहा नहीं?
है विधाता की शक्ति
हम सब के अन्दर ,
चाहे वो रेत हो या समंदर,
वह है बनकर विश्वास
हमारी साँसों में
हमारे अंतर्मन में
हमारे अन्दर ................


Friday 8 November 2013

उलझन

कई उत्तर कई बार
स्वयं प्रश्न बन जाते हैं,
हमें शब्दों में उलझाते हैं,
हम उत्तर वही ढूँढ़ते हैं
जो हमारे मन को भाते हैं,
कभी ज़िन्दगी के प्रश्नों को
अनदेखा किया करते हैं ,
कभी सुलझे उत्तरों से
कई सवाल बनाये जाते हैं,
चाहत क्या है अपनी ?
कभी अपने दिल कभी दिमाग
से पूछते रहते हैं.
क्या जायज़ क्या नाजायज़
यही पृष्ठ पलटते रहते हैं....
निष्कर्ष कभी हमेंसुलझा
कभी और उलझा जाते हैं
शुरू होता है जो
एक प्रश्न से ,
वो कई प्रश्नचिन्हों पर
जाकर अटक जाते हैं
सारे प्रश्न , सारे उत्तर
होते हमारे सामने भी
हम कुछ समझ
नहीं पाते हैं
        किन्तु
ज़िन्दगी की पाठशाला
सारे प्रश्नोत्तर
हमे अपने काल -चक्र में
समझा जाते हैं .........

Tuesday 5 November 2013

कल और आज

बरसों पहले
देख जलते दीपक को
कह बैठी थी मैं, उससे
तू तो मेरा साथी है
तू भी जलता
मैं भी जलती
तो , चल मैं भी
तेरे संग चलती.....
तनिक व्यंग्य से कहा था , उसने
तू हांड- मांस का मनुष्य
सुख -वैभव का है भोगी
जलना मेरी है नियति
क्या जलने की पीड़ा
तुझे सहन होगी?
तब हँसने की थी , बारी मेरी
कहा था मैंने हंसकर उससे ,
तेरा जलना तेरा मोक्ष है
पर मेरा जलना ?
मेरी नियति
पर दोनों का साम्य यही
तुझे जलाता है कोई
और मैं घुट -घुट जलती ...........

               आज
बरसों बाद ,फिर
हम दोनों आमने -सामने  हैं

मेरे सामने  ज़िन्दगी के कई
सुलझे मायने  हैं......
      देख मुझे
पूछा दीपक ने मुझसे
क्या अब भी तू मेरा साथी है?
क्या अब भी तू संग मेरे
चलने को राज़ी है?
हँसकर कहा मैंने
हाँ चल ले चल
अपने संग मुझको
अब मैं जान गयी हूँ खुदको
परिपक्व हो गयी हूँ मैं
घुटन और यथार्थ के
बीच की लकीर को
समझ गयी हूँ मैं
अपने अँधेरे कोने में भी
रौशनी फैला रही हूँ मैं
जलकर भी तेरी तरह
हँसना सीख गयी हूँ मैं
  साम्य अब भी
दोनों की है  वही
        पर बस
मेरी सोच नयी ................