पंखहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
शब्दहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
आह, कितना सुन्दर अनुभव था
सिर्फ ,मैं थी
और मेरा दर्शन था ,
बस, अपने भावों का प्रदर्शन था .....
कल्पना की कूची से
शब्दों का रंग बिखेरती
जो न जाना किसी ने
उन भावों को कुरेदती,.....
न कोई संकोच ,
न कोई दुविधा,
अपने शब्दों से लिपटती.........
दबे -दबाए, गड़े- गड़ाए
कई भावों को समेटती
न किसी का भय
न किसी की चिंता
भारहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
शब्दहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
सोचती हूँ
न होती ये कल्पना
तो जीवन कितना नीरस होता
खाली दिल , खाली मन
कितना बेरंग होता !
कहाँ जाकर इंसा अपने
खवाबों का पंख फ़ैलाता?
कहाँ अपने इन्द्रधनुषी
सपनों को सजाता?
बहुत सुख है उड़ने में
दूर -दूर तक उन्मुक्त उडान
हाँ, पंखहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
असीम नभ ,असीम जग
बस तान-वितान ............
कल्पना की उडान
शब्दहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
आह, कितना सुन्दर अनुभव था
सिर्फ ,मैं थी
और मेरा दर्शन था ,
बस, अपने भावों का प्रदर्शन था .....
कल्पना की कूची से
शब्दों का रंग बिखेरती
जो न जाना किसी ने
उन भावों को कुरेदती,.....
न कोई संकोच ,
न कोई दुविधा,
अपने शब्दों से लिपटती.........
दबे -दबाए, गड़े- गड़ाए
कई भावों को समेटती
न किसी का भय
न किसी की चिंता
भारहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
शब्दहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
सोचती हूँ
न होती ये कल्पना
तो जीवन कितना नीरस होता
खाली दिल , खाली मन
कितना बेरंग होता !
कहाँ जाकर इंसा अपने
खवाबों का पंख फ़ैलाता?
कहाँ अपने इन्द्रधनुषी
सपनों को सजाता?
बहुत सुख है उड़ने में
दूर -दूर तक उन्मुक्त उडान
हाँ, पंखहीन मैं उड़ रही थी
कल्पना की उडान
असीम नभ ,असीम जग
बस तान-वितान ............